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- 01 Mar, 2021
- 38
- Bhagwati lal Meghwal
समय को सार्थक बनाओ
Make the time worth while
अपने जीवन में जितना अच्छा कर लिया, जितना अच्छा जान लिया वह अपनी कमाई हो गई, नहीं तो समय बर्बाद हुआ । पैसा गया तो कुछ नहीं गया, समय गया तो सब कुछ गया। पैसा मिला तो कुछ नहीं मिला, तंदुरुस्ती मिली तो कुछ - कुछ मिला लेकिन सत्संग मिला और समय की महत्ता को समझ के समय के दाता के रहस्य को समझ गए, उस समय के दाता का ज्ञान पा लिया तो सब कुछ मिल गया। समय का सदुपयोग करो। सदुपयोग का मार्गदर्शन तो सत्संग से ही मिलता है।
सुबह उठकर संकल्प करो : 'आज का दिन मै समय का सदुपयोग करूंगा, खेलने के समय मन लगाकर खेलूंगा, पढ़ने के समय मन लगाकर पढूंगा, काम करने के समय दिल लगाकर काम करूंगा और दिल लगाकर दाता का सुमिरन व ध्यान करूंगा।'
जो दिल लगाकर काम करता है उसका राम में भी दिल लगता है। जो लापरवाही से काम करता है उसका फिर ध्यान - भजन भी ऐसे ही होता है।
एक सेठ था। उसने अपने दो प्रबंधकों को चिट्टियां लिखी कि तुम लापरवाह हो गए हो। काम पर ऐसे - ऐसे ध्यान दो, कारखाने पर ध्यान दो, ऐसा - ऐसा करो । जो कुछ आदेश था वह लिखा और नीचे आदेश लिखा कि इस चिट्ठी का आदर किया जाए वरना तुम्हें निकाल दिया जाएगा।
दोनों प्रबंधकों को चिट्टियां मिली। एक ने सारे कर्मचारी - वर्ग को बुलाकर कहा कि काम में जरा तत्परता लाए और बाहर जाकर काम करने वाले फुटकर विक्रेताओं को भी उत्साहित किया तथा उत्पादन सही, सुंदर व अधिक हो इसमें तत्परता से लग गया।
दूसरे प्रबंधक ने क्या किया ? उसने सोचा की सेठ ने चिट्ठी में लिखा है कि चिट्ठी का आदर होना चाहिए। तो उसने चिट्ठी को रूमाल में रखा, उसकी आरती की और रोज उस चिट्ठी के आगे सारे मुनीम तथा नौकर नमस्कार करने लगे।
कुछ समय बाद जब सेठ कारखानों का निरीक्षण करने गया तो जिस कारखाने में सब तत्परता से काम में लगे थे उन पर तो वह खुश हुआ और जो सेठ की चिट्ठी की रोज आरती करते थे, पूजा करते थे, चिट्ठी के आगे सिजदा करते थे उन पर वह राजी हो जायेगा क्या ? नहीं। ऐसे ही भगवान तो है सेठों के सेठऔर भगवान के शास्त्र है भगवान का संदेश। उनके शास्त्रों को, पुराणों को हाथ जोड़ते रहे लेकिन उनमें जो लिखा है उस पर अमल करे नही, भगवान जो आचरण करने को कहते हैं वह तो करे नहीं, उलटा करे तो ऐसे लोगों पर भगवान भगवान प्रसन्न होंगे क्या? भगवान बोलते हैं सत्य बोलो हम असत्य बोलें, भगवान कहते हैं परहित करो और हम शोषण करें, भगवान कहते हैं मेरे लिए सत्कर्म करो और हम अहंकार, वासना, विकार के लिए करें, तो क्या भगवान हमारे से खुश होगा ? अतः अहंकार रहित, वासना रहित कर्म करो।
धन्यवाद
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